एक पतंग थी हमने भी उड़ाई
सिर्फ तुम्हारे रंगों वाली.
लट लगाती
गोते खाती
लहराती झूमती
खुले आसमानों को चूमती।
एक पतंग थी हमने भी उड़ाई
सिर्फ तुम्हारे रंगों वाली
बड़ी प्यारी, बड़ी दुलारी
आसमान में, सबपे भारी।
डोर न था वो मांझे वाली
न कटती, न काटने वाली
शाम न थी वो आंधी वाली
फ़िज़ा सी थी वो भीनी भीनी।
फिर कटी क्यों मेरी पतंग प्यारी
जा लिपटी किस झोंके पे वारी
इक गुडबाय तक न वो हमसे बोली
और छोड़ गयी हाथों से लिपटी
ढेर सारे दिल के धागे टूटे
और एक लटाई
जो अब है हम पे भारी।
Comments
Post a Comment