जो रिश्ता समंदर का पानी से
लहरों का किनारों से है
कुछ ऐसा ही रिश्ता मेरी हमनफ़ज़
आपके दिल का हमारे दिल से है।
कभी इतनी पास की रूहानी हो जाये
कभी दूर इतनी कि रूह तड़प सा जाये।
कभी तुम्हारे आघोष में वक़्त यूँ ही निकल जाये
तो कभी बिछडन कि आग हमें निगल जाये।
सुनो, जब कभी समुन्दर की लहरें
बूंदे बन तुम्हारे बदन को सेहराये
उन्हें झटकना मत, कुछ देर और भिगोने देना
क्या खबर मेरी हमनशीं तुम्हारे कदम
लौट मेरी और फिर कब आये।
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