एक दर्द ऐसा भी दे जाओ
जो सिगरी कि तरह सुलगते रहे
थीमि थीमि सिसकियों से
रातों को जगाती रहे
एक ऐसी सुबह दे जाओ
जिसकी कोई रात ना हो
और जो ख्वाइश अंधेरों कि हो
तुम्हारे ज़ुल्फ़ों का साया साथ हो।
एक ख़्वाब ऐसा दे दो
जिससे हम कभी जागे नहीं
और जो गर आँखें खुले
बगल में तुमको पाऊं
एक रंग ऐसा चढ़ादो
जो बदन से उतरे
तो लहु पे चढ़ जाये
ज़िगर से सिमटे
और ज़िन्दगी बन जाये।
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