ये कैसा सन्नाटा है ज़िंदगी
जो इस कदर बेबस करती है
कि शाम ठले
तो तुम्हारी यादें शोर-ग़ुल
चैन तबाह कर देती है
जो इस कदर बेबस करती है
कि शाम ठले
तो तुम्हारी यादें शोर-ग़ुल
चैन तबाह कर देती है
इससे अच्छा तो यह होता
कि कुछ दूर और हम साथ साथ चलते
और यूँही किसी मोड़ पर पलक झपकते
तुम कुछ ऐसा केह देती
और मे कुछ वैसा सुन जाता
कि राह चलते जो इक मोड़ अति
तुम इक राह पकड़ती
और दुसरे से हम निकल जाते।
कि कुछ दूर और हम साथ साथ चलते
और यूँही किसी मोड़ पर पलक झपकते
तुम कुछ ऐसा केह देती
और मे कुछ वैसा सुन जाता
कि राह चलते जो इक मोड़ अति
तुम इक राह पकड़ती
और दुसरे से हम निकल जाते।
may be someday you'll be able to picture out, why the trajectories collided and then parted.and that day even if u had the chance to go back and change the coordinates of the time axis, you would not. may be, u would want to let things happen just the way they happened.. that day, you'll look back n smile. i pray you find that day soon.
ReplyDeleteand the close of the verse makes a deep impact. keep writing.
Beautifully written comment,... Better than the poem ;)
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